खुद हिम्मत नहीं हारी, बीमारी ही हारी। टीबी चैम्पियन कर रहे हैं लोगों को टीबी के खिलाफ जागरूक

खुद हिम्मत नहीं हारी, बीमारी ही हारी। टीबी चैम्पियन कर रहे लोगों को टीबी के खिलाफ जागरूक।

”हर रोज गिर कर भी मुकम्मल खड़े हैं
एै जिन्दगी देख,
मेरे हौंसले तुझसे भी बड़े हैं।।”
ये पंक्तियां टीबी चैम्पियन के जज्बे और हिम्मत पर सटीक बैठती है, जिन्होंने टीबी जैसी बीमारी को हराकर रख दिया है। यूं तो टीबी की बामारी को लेकर आज भी लोगों को डर का माहौल बन जाता है। लेकिन जो इस बामारी को हराने के लिए अपनी हिम्मत को टूटने नहीं देते है। अंतिम जीत उन्हीं की होती है। शिमला जिला में 1800 के करीब टीबी के मरीज है। इनमें से 90 फीसदी मरीज टीबी को हरा कर नई जिंदगी जी रहा है। टीबी चैंपियनों ने अपनी हिम्मत नहीं हारी, इस वजह से अंत में बीमारी को ही हारना पड़ा।
इन्हीं में से कुछ ऐसे टीबी चैम्पियन भी है जोकि अब समाज में टीबी के खिलाफ जागरूकता अभियान में अग्रणी भूमिका निभा रहे है।
शिमला के लालपानी की रहने वाली निर्मला ने अपनी टीबी के खिलाफ लड़ाई को सांझा करते हुए कहा कि कुछ साल पहले टीबी हुई थी। शुरू के डेढ़ महीने तक तो मुझे इस बारे में पता ही नहीं था कि मुझे टीबी हो गया है। घर की आर्थिक स्थिति भी सही नहीं थी। इस बजह से टीबी के इलाज के लिए मुझे शुरू में दिक्कतों को सामना करना पड़ा। जब डाक्टर ने मेरा चैकअप किया और फिर छह महीने दवाईयों को कोर्स करवाया। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और टीबी की बीमारी से पूरी तरह ठीक हो गई। मेरे पति और घर के अन्य सदस्यों ने मेरा काफी साथ दिया जिससे मुझे हौसला मिलता रहा। मैंने सारा इलाज सरकारी अस्पताल में ही करवाया है। अब मैं लोगों को टीबी के बारे में जागरूक करती हूं। भारत का टीबी मुक्त बनाने में हम सभी को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

मूलकोटी गांव की रहने वाली दीपिका ने बताया कि मुझे तीन बार टीबी हो चुका है। लेकिन तीनों बार ही टीबी को मैं हरा चुकी है। मैं टीबी से ग्रसित मरीजों से यही अपील करना चाहती हूं कि इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है। बस हमें सजग रहते हुए चिकित्सक की सलाह के अनुसार की रणनीति पर कार्य करना है। तभी टीबी को हरा सकते है। उन्होंने समस्त पंचायत प्रतिनिधियों का टीबी मुक्त भारत अभियान में सहयोग मांगा।
केल्टी गांव की रहने वाली निशा ने कहा कि अप्रैल 2024 में मुझे पता चला की मुझे टीबी हुआ है। उस समय मेरा बच्चा मात्र आठ महीने का था। मैं काफी डर गई थी कि इस बीमारी के कारण कहीं मेरे बच्चे को कुछ हो तो नहीं जाएगा। लेकिन चिकित्सकों काफी प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा दी गई दवाईयों से मैं टीबी को हराने में सफल रही है। मेरे पति और माता ने मुझे काफी प्रोत्साहित किया । उन्होंने मेरी हिम्मत कम नहीं होने दी। मैं सभी टीबी ग्रसित मरीजों के परिजनों को यह कहना चाहती कि मरीज के हौसले को कम न होने दो।
क्यार कोटी की रहने वाली डिंपल ने बताया कि दो बार टीबी से ग्रसित हो चुकी हूं। लेकिन मैं दो बार टीबी से जीत चुकी हूं। पहली बार 2016 और दूसरी बार 2021 में टीबी को हराया है। मैं लोगों को पंचायत में , कई कार्यक्रमों में स्कूली बच्चों को टीबी के खिलाफ जागरूक करती हूं। मैं एक स्वस्थ जीवन जी रही हूं।

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