भूमि अधिग्रहण प्रभावितों के मुद्दों पर किसान सभा द्वारा प्रदेश भर में आंदोलन करने का फैसला।
भूमि से जुड़े मुद्दों तथा भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर हिमाचल किसान सभा द्वारा आज मंडी में एक दिवसीय अधिवेशन आयोजित किया गया। अधिवेशन का दृष्टिकोण प्रस्ताव रखते हुए डॉक्टर कुलदीप सिंह तनवर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण हो रहा है तथा किसानों व प्रभावितों को उचित मुआवजा भी नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश भर के किसानों को तथा प्रभावित जनता को संगठित होने की जरूरत है तथा किसान सभा इस काम के लिए निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि देश में भूमि अधिग्रहण को लेकर जो 2013 का कानून बना है उसको भी प्रदेश में लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रेलवे, टेलीग्राफ सहित भूमि अधिग्रहण को लेकर कई कानून हैं। किसान सभा की मांग है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत ही मुआवजा, पुनर्स्थापना व पुनर्वास होना चाहिए। इसलिए जहां भी अधिग्रहण हो रहा है और निर्माण कार्य हो रहे हैं वहां हकों की लड़ाई लड़ने तथा मांगों को हासिल करने के लिए लड़ाई लड़नी होगी।
इससे पहले अधिवेशन की शुरुआत में कुशाल भारद्वाज ने कहा कि प्रदेश भर में फोरलेन सड़कों, अन्य सड़कों, रेलवे लाइन, टावर लाइन, हाइडल प्रोजेक्टों, हवाई अड्डों, उद्योगों व अन्य निर्माण कार्यों के लिए किसानों की जमीने अधिग्रहित की गई हैं या फिर ज़मीनों के अधिग्रहण की तैयारी हो रही है। लेकिन बड़े खेद की बात है कि कहीं भी भूमि अधिग्रहण कानून को लागू नहीं किया जा रहा। न तो फैक्टर 2 के अनुरूप मुआवजा दिया जा रहा है और न ही अन्य प्रावधानों को लागू किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार या निर्माण कार्य में लगी कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण और निर्माण कार्यों से पुनर्वास, संपर्क सड़कों, सर्विस रोड़, पैदल रास्ते, बावड़ी, कुएं, हैंड पंप, फूट ओवर ब्रिज, अंडर पास, अधिग्रहित भूमि के बाहर की भूमि पर होने वाले नुकसान, पर्यावरण से फसलों को होने वाले नुकसान आदि मुद्दों का समाधान नहीं किया जा रहा है। कल्वर्ट बनने से आस-पास की ज़मीनों में जो नाले तबाही मचा रहे हैं, उसके मुआवजे का भी कोई प्रावधान नहीं किया जा रहा है।
अधिवेशन का समापन करते हुए डॉक्टर ओंकार शाद ने कहा कि इस देश के और प्रदेश के किसानों ने जब भी कुछ हासिल किया, वह संगठित संघर्ष से ही हासिल किया है। उन्होंने कहा कि जमीन का मुद्दा हमेशा से ही देश भर में किसानों का प्रमुख मुद्दा रहा है। साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष के साथ ही देश भर के किसानों ने सामंतशाही के खिलाफ लंबा संघर्ष किया है। हिमाचल में भी भूमि हदबंदी कानून और मुजारा कानून इन्हें संघर्षों के बाद ही बने। जिसमें भूमिहीनों और गरीब किसानों को जमीनें दी गई, लेकिन आज प्रदेश भर के किसान विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं और उनको न उचित मुआवजा मिल रहा है न रोजगार ही मिल रहा है। जहां भी किसानों और प्रभावितों ने संगठित संघर्ष लड़े वहीं कुछ हासिल हो पाया है। उन्होंने वर्तमान में निर्माणाधीन लुहरी-1 और सुन्नी हाईडल प्रोजेक्टों में किसान सभा के नेतृत्व में प्रभावितों द्वारा लड़े जा रहे संघर्षों तथा पूर्व में भी नाथपा झाकड़ी, रामपुर, पार्वती, मलाणा, प्रीणी, ऊहल,-3, कोल डैम सहित विभिन्न प्रोजेक्टों और फोरलेन सड़कों के प्रभावितों के किसान सभा के बैनर तले लड़े गए संघर्षों और हासिल उपलब्धियों का उल्लेख किया तथा हर जगह संगठन निर्माण करने तथा सही दिशा देने और संघर्ष विकसित करने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि पिछली भाजपा सरकार के दौरान बड़ी चालाकी से भूमि के सर्कल रेट बहताशा घटा कर किसानों की जमीने कौड़ियों के भाव हड़पने का रास्ता निकाला गया है। जिस जमीन की मार्केट वैल्यू करोड़ों रूपये है, उसको मात्र कुछ लाख रूपये दे कर ही हड़पा जा रहा है।
अधिवेशन में प्रस्ताव पारित करते हुए सभी जिलों में तथा स्थानीय स्तर पर अधिवेशन करने, मांगों पर हस्ताक्षर अभियान और ज्ञापन देने तथा मांगों पर स्थानीय स्तर पर आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया गया। सुन्नी हाईडल प्रोजेक्ट के प्रभावितों की मांगों पर 16, 17, 18 सितंबर को नीरथ, कोटगढ़ और रामपुर में एसडीएम व तहसील कार्यालय पर विशाल धरने आयोजित किए जाएं।
इस अधिवेशन में मंडी, शिमला, कुल्लू,, कांगड़ा, सिरमौर, सोलन के प्रभावित भी विशेष तौर पर उपस्थित हुए। मंडी जिला के बल्ह, सुंदरनगर, जोगिंदर नगर, बालीचौकी आदि क्षेत्रों के प्रभावित किसान प्रतिनिधि शामिल हुए। इस अवसर पर मंडी से जोगिंदर वालिया, कुल्लू से नारायण चौहान, कांगड़ा से शोकिनी राम, जोगिंदर नगर से देव राम ठाकुर, सुंदरनगर से जगमेल ठाकुर, कुल्लू से नारायण चौहान, शिमला से जयशिव ठाकुर, कुसुंपटी से चेतन, सोलन से अशोक कुमार, सिरमौर से राजेंद्र ठाकुर आदि ने भी चर्चा में हिस्सा लेते हुए अपने अनुभव और मुद्दे अधिवेशन में रखे।