दिनांक: 6 सितंबर 2024 हिमाचल किसान सभा की राज्य कमेटी द्वारा जंगली जानवरों व आवारा पशुओं से उत्पन्न समस्या तथा भूमि से जुड़े मुद्दों तथा भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर आज धर्मशाला के खनियारा में राज्य स्तरीय अधिवेशन आयोजित किया। इस अधिवेशन में प्रदेश भर के अलग-अलग जिलों से 200 किसान प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
इस अवसर पर राज्य अध्यक्ष डॉक्टर कुलदीप तनवर, राज्य उपाध्यक्ष कुशाल भारद्वाज, राज्य सचिव होतम सोंखला, कांगड़ा जिला के अध्यक्ष सतपाल, सिरमौर के अध्यक्ष राजेंद्र ठाकुर, कांगड़ा के सचिव शोकीनी राम, सोलन जिला सचिव प्यारे लाल तथा सीटू नेता रविंदर कुमार ने भी संबोधित किया।
इस अवसर पर सभी जिलों के कुल 30 सदस्यों ने अपने जिला की तरफ से चर्चा में हिस्सा लिया तथा उपरोक्त समस्याओं बारे अपने अनुभव सांझा किए तथा महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की गई कि जंगली जानवरों व आवारा नकारा पशुओं की समस्या से किसानों को निजात दिलाई जाए।
राज्य अध्यक्ष डॉक्टर कुलदीप सिंह तनवर ने कहा कि जंगली जानवरों व आवारा पशुओं की समस्या प्रदेश भर के किसानों की सबसे बड़ी समस्या बन गई है और कोई भी सरकार इस समय के समाधान के लिए गंभीर नहीं है। जंगली जानवरों के कारण प्रदेश में हर साल लगभग 2300 करोड़ रुपए का नुकसान होता है।। प्रदेश के 10 लाख से अधिक किसानों को 400-500 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि बंदरों के निर्यात पर लगी रोक हटनी चाहिए, बंदरों व दूसरे उत्पाती जंगली जानवरों को वर्मिन घोषित कर उनको मारने के लिए वन विभाग के माध्यम से सिद्धस्त शिकारी हायर किए जाएं। डॉक्टर कुलदीप सिंह तनवर ने कहा कि किसानों के कब्जे वाली जमीन को को नियमित किया जाए तथा किसानों के खिलाफ किसी भी बेदखली अभियान को किसान सभा सहन नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि भूमिहीनों को कम खेती बागवानी के लिए जमीन दी जाए तथा हर भूमिहीन को घर बनाने के लिए जमीन दी जाए।
राज्य सचिव होतम सोंखला ने इस अधिवशन के उद्देश्यों के बारे में बताया तथा कहा कि आवारा पशुओं की समस्या भी आज प्रमुख समस्या बन चुकी है। उन्होंने मांग की कि पशुपालन किए सबसिडी दी जाए, पशुओं की उन्नत नस्ल के लिए प्रोत्साहित किया जाए तथा इसके लिए संसाधन उपलब्ध करवाए जाएं। पंचायत स्तर पर पशु आहार बैंक व डिपु बनाकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से चलाया जाए और स्थानीय लोगों को उसमें रोजगार दिया जाए। किसान सभा ने मांग की कि खेतों की रखवाली के लिए मनरेगा के माध्यम से राखे रखे जाएं। उन्होंने कहा कि आज किसानों को एकजुट करने और उन्हें खुद भी एकजुट होने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर राज्य उपाध्यक्ष कुशाल भारद्वाज ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण हो रहा है तथा किसानों व प्रभावितों को उचित मुआवजा भी नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश भर के किसानों को तथा प्रभावित जनता को संगठित होने की जरूरत है तथा किसान सभा इस काम के लिए निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि देश में भूमि अधिग्रहण को लेकर जो 2013 का कानून बना है उसको भी प्रदेश में लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रेलवे, टेलीग्राफ सहित भूमि अधिग्रहण को लेकर कई कानून हैं। किसान सभा की मांग है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत ही मुआवजा, पुनर्स्थापना व पुनर्वास होना चाहिए। इसलिए जहां भी अधिग्रहण हो रहा है और निर्माण कार्य हो रहे हैं वहां हकों की लड़ाई लड़ने तथा मांगों को हासिल करने के लिए लड़ाई लड़नी होगी। प्रदेश भर में फोरलेन सड़कों, अन्य सड़कों, रेलवे लाइन, टावर लाइन, हाइडल प्रोजेक्टों, हवाई अड्डों, उद्योगों व अन्य निर्माण कार्यों के लिए किसानों की जमीने अधिग्रहित की गई हैं या फिर ज़मीनों के अधिग्रहण की तैयारी हो रही है। लेकिन बड़े खेद की बात है कि कहीं भी भूमि अधिग्रहण कानून को लागू नहीं किया जा रहा। न तो फैक्टर 2 के अनुरूप मुआवजा दिया जा रहा है और न ही अन्य प्रावधानों को लागू किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार या निर्माण कार्य में लगी कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण और निर्माण कार्यों से पुनर्वास, संपर्क सड़कों, सर्विस रोड़, पैदल रास्ते, बावड़ी, कुएं, हैंड पंप, फूट ओवर ब्रिज, अंडर पास, अधिग्रहित भूमि के बाहर की भूमि पर होने वाले नुकसान, पर्यावरण से फसलों को होने वाले नुकसान आदि मुद्दों का समाधान नहीं किया जा रहा है। कल्वर्ट बनने से आस-पास की ज़मीनों में जो नाले तबाही मचा रहे हैं, उसके मुआवजे का भी कोई प्रावधान नहीं किया जा रहा है।
अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर समस्याओं के समाधान के लिए प्रदेश भर में अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। इसके लिए हर जिला व लोकल स्तर पर अधिवेशन आयोजित किए जाएंगे तथा गांव गांव हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। 25 सितंबर को हिमाचल प्रदेश के किसान जंगली जानवरों के मुद्दे पर संसद घेरने दिल्ली जाएंगे। 30 सितंबर को जिला व उपमंडल पर सरकार को ज्ञापन दिए जायेंगे। एक से दस दिसंबर तक उपमंडल व खंड स्तर पर पर धरने दिए जाएंगे। मांगें न माने जाने पर शीतकालीन सत्र में विधान सभा मार्च किया जाएगा।